chal gayi

कविता - चल गई
कवि - शैल चतुर्वेदी

वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ,
आप ही तरह श्रीमान हूँ,
मगर अपनी आँख से
बहुत परेशान हूँ
अपने आप चलती है,
लोग समझते हैं -
चलाई गयी है,
जानबूझ कर मिलाई गयी है

एक बार बचपन में,
शायद सन पचपन में,
क्लास में,
एक लड़की बैठी थी पास में,
नाम था सुरेखा
उसने हमें देखा
और बाईं चल गई
लड़की हाय हाय,
क्लास छोड़कर बाहर निकल गई। 
थोड़ी देर बाद,
हमें है याद,
प्रिंसिपल ने बुलाया,
लम्बा चौड़ा लेक्चर पिलाया,
हमने कहा कि जी भूल हो गई,
वो बोला - ऐसा भी होता है भूल में,
शर्म नहीं आती,
ऐसी गन्दी हरकतें करते हो,
स्कूल में?
और इससे पहले कि
हकीकत बयान करते,
कि फिर चल गई
प्रिंसिपल को खल गई। 
हुआ यह परिणाम 
स्कूल से कट गया नाम

बमुश्किल तमाम,
मिला एक काम,
तो इंटरव्यू में,
खड़े थे क्यू में,
एक लड़की थी सामने अड़ी,
अचानक मुड़ी,
नज़र उसकी हम पर पड़ी
और आँख चल गई,
लड़की उछल गई,
दूसरे उम्मीदवार चौंके,
लड़की का पक्ष ले कर भौंके,
फिर क्या था,
मार-मार जूते-चप्पल,
फोड़ दिया हमारा बक्कल,
सिर पर पाँव रखकर भागे,
लोग-बाग़ पीछे, हम आगे,
घबराहट में घुस गए एक घर में,
भयंकर पीड़ा थी सर में,
बुरी तरह हांफ रहे थे,
मारे डर के कांप रहे थे,

तभी पूछा उस गृहणी  ने -
कौन?
हम खड़े रहे मौन। 
वो बोली,
बताते हो या किसी को बुलाऊँ?
और इस से पहले कि,
मैं जुबान हिलाऊँ
चल गई
वह मारे गुस्से के
जल गई 
साक्षात दुर्गा-सी दिखी
बुरी तरह चीखी 
बात की बात में जुड़ गए अड़ोसी-पडोसी,
मौसा-मौसी,
भतीजे-मामा,
मच गया हंगामा 
चड्डी बना दिया हमारा पजामा 
बनियान बन गई कुर्ता 
मार-मार कर बना दिया
हमारा भुर्ता 
हम चीखते रहे,
और पीटने वाले
हमें पीटते रहे 
भगवान जाने कब तक,
निकालते रहे रोष। 

पर जब आया हमें होश,
तो देखा अस्पताल में पड़े थे,
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे 
हमने अपनी एक आँख खोली
तो एक नर्स बोली
दर्द कहाँ है?
हम कहाँ कहाँ बतलाते 
और इससे पहले कि कुछ कह पाते 
चल गई 
नर्स कुछ नहीं बोली 
बाई गॉड! (चल गई)
मगर डॉक्टर को खेल गई
बोला -
इतने सीरियस हो
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो
इस हाल में
शर्म नहीं आती
मोहब्बत करते हुए
हस्पताल में?
उन सब के जाते ही
आया वार्ड-बॉय
देने लगा अपनी राय
भाग जाएँ चुपचाप
नहीं जानते आप
बात बढ़ गयी है
डॉक्टर को गड़ गई है
केस आपका बिगाड़ देगा
न हुआ तो मरा बताकर
ज़िंदा ही गड़वा देगा।
तब अँधेरे में आँखें मूँदकर
खिड़की से कूदकर
भाग आये
जान बची तो लाखों पाये।

एक दिन सकारे
बाप जी हमारे
बोले हमसे -
अब क्या कहें तुमसे?
कुछ नहीं कर सकते
तो शादी कर लो
लड़की देख लो
मैंने देख ली है
ज़रा हैल्थ की कच्ची है
बच्ची है, फिर भी अच्छी है
जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहाँ भी तो कड़की है।
हमने कहा -
जी  जल्दी है?
वे बोले -
गधे हो,
ढाई मन के हो गए
मगर बाप के सीने पर लदे  हो
वह घर फंस गया तो संभल जाओगे।

तब एक दिन भगवन से के,
धड़कता दिल ले
पहुँच गए रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली -
यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गई
वे समझीं मचल गई
बोली -
लड़की तो अंदर है
मैं लड़की की माँ हूँ
लड़की को बुलाऊँ?
और इससे पहले कि मैं ज़ुबान हिलाऊँ
आँख चल गई दुबारा
उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा
झटके से खड़ी हो गईं
हम जैसे गए थे लौट आए
घर पहुंचे मुँह लटकाए
पिताजी बोले -
अब क्या फायदा मुँह लटकाने से
आग लगे ऐसी जवानी में
डूब मरो चुल्लू  पानी में
नहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो
नहीं फोड़ सकते तो हमसे नाता तोड़ लो
जब भी कहीं जाते हो
पिटकर ही आते हो
भगवान जाने कैसे चलाते हो!
अब आप ही बताइए
क्या करूँ?
कहाँ जाऊँ?
कहाँ तक गन गाऊं अपनी इस आँख के
कमबख्त जूते खिलवाएगी लाख-दो-लाख के।
अब आप ही संभालिये
मेरा मतलब है की कोई रास्ता निकालिए
जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की
जिसकी एक आँख चलती हो,
पता लगाइए
और मिल जाए
तो हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइए।

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