Thursday, 6 November 2014

भावनाएँ और कविताएँ

अपनी भावनाओं को शब्दों में प्रस्तुत करने का कविता एक उत्तम माध्यम है। और कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं कि कभी-कभी पाठक के मन में अपनी छाप छोड़ ही जाती हैं। एक ऐसी ही सुन्दर एवं शक्तिपूर्ण कविता है - 'कारवाँ गुज़र गया', जिसकी रचना कवि श्री गोपालदास नीरज ने की है। अपने जीवन को लेकर, अपनी प्रगति हेतु, प्रत्येक व्यक्ति के मन में बहुत से सपने और इच्छाएँ होती हैं। समय व्यतीत होता है, आयु बढ़ती है, मनुष्य बच्चे से युवा हो जाता है, और युवा से वृद्ध। एक दिन ऐसा आता है जब वह अपने आप को अकेला और थका-मांदा महसूस करता है। और सोचता है कि, वह इच्छाएँ, वह सपने, जो उसने बचपन में देखे थे, कभी पूरे ही न हो सके। कवि गोपालदास नीरज ने मनुष्य की इसी भावना को बड़ी ही सुंदरता से कविता में उतार है। प्रस्तुत है -

कारवाँ गुज़र गया

Monday, 3 November 2014

प्रेरणादायक कविताएं (Inspirational Poems)

प्रेरणादायक कविताएं (Inspirational Poems)

एक ऐसी कविता है आदरणीय श्री मैथिलीशरण गुप्त जी की, जिसे सबसे पहले मैंने अपनी माँ के मुख से ही सुना था। बचपन में नित्य ही उन्हें यह कविता मैंने गुनगुनाते हुए सुनी है। बड़ी ही मधुर है यह सुनने में, और इसका अर्थ समझते ही माधुर्य और भी बढ़ जाता है।  

कविता - नर हो न निराश करो मन को 
कवि - मैथिलिशरण गुप्त 

Wednesday, 22 October 2014

हास्य और व्यंग्य

कविता - चल गई
कवि - शैल चतुर्वेदी

कविता - इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
कवि - ओम प्रकाश आदित्य 

कविता - देश के लिए नेता 
कवि - शैल चतुर्वेदी 

जीवन के कुछ पाठ

भारतीय सरकार के एक सेन्सस के अनुसार हमारे देश की शाक्षरता सन २००१ में लगभग ६४.८३ % थी, जबकि सन २०११ में यह बढ़कर ७४.०४ % हो चुकी है - १०% बढ़ोतरी! परन्तु क्या यह काफी है, अर्थात क्या मात्र प्रतिशत की गिनती बढ़ने से हम आज बुद्धिमान और विवेकशील हो गए हैं? हाँ, हम साक्षर अवश्य ही हो गए हैं, पहले की अपेक्षाकृत अधिक। लेकिन आज भी हम स्वयं को जाति, धर्म, रंग, अमीरी-गरीबी, प्रान्त, बोली और न जाने क्या-क्या, बंधनों में जकड़ा हुआ पाते हैं। यही नहीं, आज भी हम अंधविश्वास और प्राचीन दकियानूसी परम्पराओं में भी बंधा हुआ पाते हैं। कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं है, कि पुरानी समस्त परम्पराएं गलत हैं, अपितु आवश्यक है, प्रत्येक को समझ-बूझ से इनका पालन करना। समय एवं परिस्थिति अनुसार परम्पराओं का जन्म होता है, और समय एवं परिस्थिति अनुसार ही इनका अंतिम संस्कार भी आवश्यक है। जीवन में उत्थान के लिए हर व्यक्ति को केवल साक्षर होना ही पर्याप्त नहीं है, इन मित्थ्या बंधनों से ऊपर उठना और सजग होना भी बहुत आवश्यक है। कवि श्री द्वारका प्रसाद माहेश्वरी की यह रचना मानव-मात्र की प्रगति हेतु एक मूल पाठ है। उनका सन्देश बड़ा ही सरल है, और वह है -

Tuesday, 21 October 2014

दोहे एवं उनका विस्तार

१८२५ ईसवी का यह चित्र दर्शा रहा है
कबीर दास और  उनके एक शिष्य को
(http://en.wikipedia.org/wiki/Kabir)

संत कबीर के दोहे 

कबीर दास जी एक संत कवि और समाज सुधारक थे। संत कबीर भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे।  कबीर एक अरबी नाम है, जो अल-कबीर से आता है। इसका अर्थ है - महान - जो कि इस्लाम में अल्लाह का ३७वां नाम भी है। कबीर पंथ - एक ऐसा धार्मिक समुदाय है जो कबीर के सिद्धांतों और शिक्षाओं को अपनी जीवन शैली का आधार मानता है।
एक बात तो है, और वह यह कि संत कबीर के बारे में चाहे जितना भी लिखा या कहा जाए इस ब्लॉग के ज़रिये, अपर्याप्त ही रहेगा। इसी कारणवश मैं इस ब्लॉग में मात्र उनके बहुमूल्य कथन/दोहे (अर्थ समेत) ही प्रस्तुत कर रहा हूँ।

Monday, 6 October 2014

One Poem to Start Life With

नमस्ते मित्रों,

मेरी जीवन के प्रथम ब्लॉग में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन! कुछ ऐसे क्षण, कुछ ऐसी शिक्षाएं जो हमें इस जीवन से मिली हैं, वे मुझे अविरत ही प्रेरित करती हैं, आप सभी से इन्हें बाँटने हेतु। आशा करता हूँ आपके हृदय के, मन मस्तिष्क के कुछ तार, अवश्य ही मेरा यह ब्लॉग सफल होगा छूने में। इसी आशा के साथ मैं अपने जीवन की प्रथम ऐसी कविता जिसने मेरे मन में कहीं न कहीं कोई छाप छोड़ी है, आपके साथ बाँटता (आपसे शेयर करता) हूँ।